त्योहारों की रौनक बढ़ रही है, लेकिन राजधानी की हवा फिर से धुंधली पड़ने लगी है। दीवाली से पहले ही दिल्ली की हवा में प्रदूषण का ज़हर घुल चुका है।
Air Quality Index (AQI) आज सुबह 157 दर्ज किया गया — यानी हवा “Poor” श्रेणी में पहुँच चुकी है।
जहाँ रोशनी और खुशियों की तैयारियाँ चल रही हैं, वहीं दिल्लीवासियों के सामने अब असली चुनौती है — सांस लेना भी मुश्किल हो गया है।
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ToggleDelhi Pollution-दिल्ली की हवा की ताज़ा तस्वीर
CPCB (Central Pollution Control Board) के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली के अधिकांश इलाकों में हवा की गुणवत्ता (Air Quality) लगातार बिगड़ रही है। राजधानी के कई हिस्सों में AQI “Poor” श्रेणी में पहुँच चुका है, जबकि कुछ क्षेत्रों में यह “Very Poor” के करीब है।
| क्षेत्र | AQI | श्रेणी |
|---|---|---|
| आनंद विहार | 182 | Poor |
| द्वारका | 164 | Poor |
| रोहिणी | 173 | Poor |
| आईटीओ | 151 | Poor |
| नई दिल्ली (सेंट्रल) | 133 | Moderate |
| नरेला | 192 | Poor |
विशेषज्ञों के अनुसार, दिल्ली के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों में PM2.5 और PM10 के स्तर सामान्य सीमा से लगभग 3 गुना ज़्यादा दर्ज किए गए हैं।
हवा में मौजूद सूक्ष्म धूल कण और विषैले गैसें अब श्वसन तंत्र पर असर डालने लगी हैं, खासकर बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा के मरीजों के लिए यह हवा बेहद खतरनाक बनती जा रही है।
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हालात ऐसे ही बने रहे, तो दिवाली तक दिल्ली की हवा “Very Poor” या “Severe” श्रेणी में पहुँच सकती है — यानी साँस लेना भी मुश्किल हो जाएगा।
“दिल्ली की हवा हर साल अक्टूबर से फरवरी तक ज़हर बन जाती है। जब तक स्रोतों पर नियंत्रण नहीं किया जाता, तब तक यह मौसमी संकट साल दर साल लौटेगा।” — पर्यावरण वैज्ञानिक, डॉ. आर. के. सिंह
क्यों बिगड़ रही है दिल्ली की हवा? — पाँच बड़े कारण
हर साल की तरह इस बार भी दिल्ली का दम घुट रहा है। लेकिन वजह वही पुरानी हैं — फर्क सिर्फ इतना है कि हालात अब और गंभीर हो चुके हैं।
1. पराली का धुआँ
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने धान की फसल कटाई के बाद पराली जलाना शुरू कर दिया है।
सैटेलाइट डेटा के मुताबिक, पिछले 48 घंटों में इन राज्यों से 3500 से ज़्यादा पराली जलाने की घटनाएँ दर्ज की गई हैं।
हवा का रुख उत्तर-पश्चिम से दिल्ली की ओर होने के कारण यह धुआँ राजधानी में पहुँचकर हवा को जहरीला बना रहा है।
2. पटाखों की बिक्री और जलाना
हालाँकि दिल्ली सरकार ने इस साल भी पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है, लेकिन ग्रे-मार्केट और ऑनलाइन बिक्री अभी भी जारी है।
हर साल दीवाली की रात को सिर्फ 3–4 घंटे में PM2.5 का स्तर 300 µg/m³ से ऊपर पहुँच जाता है — जो सामान्य से 10 गुना ज़्यादा है।
3. वाहनों से उत्सर्जन
दिल्ली में रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या अब 1.4 करोड़ से अधिक हो चुकी है।
ट्रैफिक जाम और पुरानी डीजल गाड़ियों से निकलता धुआँ प्रदूषण में 40% तक योगदान दे रहा है।
इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या बढ़ी है, लेकिन अभी भी यह शहर की आबादी के अनुपात में बहुत कम है।
4. निर्माण कार्य और सड़क धूल
दिल्ली में चल रहे निर्माण कार्य — मेट्रो लाइनें, एक्सप्रेसवे, और इमारतें — लगातार धूल उड़ा रहे हैं।
जहाँ-जहाँ पानी का छिड़काव या ढकने की व्यवस्था नहीं है, वहाँ से उड़ी धूल सीधे हवा में मिल रही है।
5. मौसम और ठंडी हवाएँ
अक्टूबर के मध्य से हवा की गति कम हो जाती है, तापमान गिरता है और प्रदूषण ऊपर नहीं उठ पाता।
यह “सर्दियों का इन्वर्शन इफ़ेक्ट” कहलाता है — यानी ज़हरीली हवा ज़मीन के पास फँसी रह जाती है।
दिल्ली की हवा: सांस के साथ ज़हर भी अंदर
जब AQI “Poor” से ऊपर पहुँच जाता है, तो इसका असर सीधा फेफड़ों, दिल और दिमाग पर पड़ता है।
डॉक्टरों का कहना है कि पिछले एक हफ्ते में सांस की तकलीफ, खाँसी और एलर्जी के केसों में 25–30% की बढ़ोतरी देखी गई है।
एम्स के पल्मोनरी विभाग के डॉक्टर ने बताया —
“यह धीरे-धीरे असर डालने वाला जहर है। लोग इसे सामान्य सर्दी या थकान समझते हैं, लेकिन यह फेफड़ों की क्षमता को हर दिन थोड़ा-थोड़ा कम कर देता है।”
बच्चे, बुजुर्ग और अस्थमा या हृदय रोगी सबसे अधिक जोखिम में हैं।
सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
दिल्ली सरकार और CPCB ने हालात को देखते हुए GRAP Stage-1 लागू कर दिया है।
इसके तहत कई सख्त नियम लागू किए गए हैं:
1. निर्माण कार्यों पर निगरानी
निर्माण स्थलों पर धूल रोकने के लिए नेट-कवर और पानी का छिड़काव अनिवार्य किया गया है।
जिन साइट्स पर नियमों का पालन नहीं होगा, उन पर जुर्माना लगेगा।
2. मिस्ट नोजल्स और वॉटर कैनन
द्वारका, करोल बाग और रोहिणी जैसे इलाकों में मिस्ट नोजल्स लगाए गए हैं जो बारीक पानी की बौछार छोड़ते हैं, ताकि धूल नीचे बैठे।
3. Pollution Innovation Challenge
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) ने निजी कंपनियों और स्टार्टअप्स के लिए एक Innovation Challenge शुरू किया है —
जहाँ नई तकनीकें जैसे “Anti-Smog Towers”, “AI Air Sensors” और “Dust Filters” को बढ़ावा दिया जा रहा है।
4. पेट्रोल पंपों पर Vapour Recovery System
सभी पेट्रोल पंपों पर Vapour Recovery System लगा दिए गए हैं ताकि ईंधन भरते समय गैसें हवा में न मिलें।
5. Green Mission अभियान
स्कूलों और RWAs के सहयोग से ‘Green Delhi Mission’ के तहत हज़ारों पौधे लगाए जा रहे हैं ताकि हरित क्षेत्र बढ़े और प्रदूषण घटे।
जनता की भूमिका — अब सिर्फ शिकायत नहीं, ज़िम्मेदारी ज़रूरी
सरकार हर संभव कदम उठा रही है, लेकिन दिल्ली की हवा को साफ़ करना अकेले उनके बस की बात नहीं।
अब हर नागरिक को अपनी भूमिका निभानी होगी:
- कम गाड़ी चलाएं — साझा वाहन या मेट्रो का उपयोग करें।
- पटाखों से दूर रहें — त्योहार मनाएं लेकिन धुआँ नहीं।
- N95/N99 मास्क पहनें जब बाहर जाएँ।
- घर में पौधे लगाएँ — एलोवेरा, स्नेक प्लांट, मनी प्लांट हवा साफ़ करने में मदद करते हैं।
- घर की खिड़कियाँ बंद रखें प्रदूषण के चरम समय में।
साउथ दिल्ली की निवासी अर्चना मिश्रा कहती हैं:
“हम बच्चों को पार्क नहीं ले जा रहे। डॉक्टर ने कहा है कि फिलहाल घर के अंदर ही खेलना बेहतर है।”
प्रदूषण का आर्थिक असर भी कम नहीं
दिल्ली में प्रदूषण सिर्फ स्वास्थ्य नहीं, अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है।
स्मॉग के दिनों में ट्रैफिक बढ़ जाता है, उड़ानें देर से चलती हैं, मजदूरों की उत्पादकता घट जाती है और बाहर काम करने वालों की सेहत बिगड़ती है।
एक स्वतंत्र अध्ययन के अनुसार —
दिल्ली में प्रदूषण हर साल करीब ₹10,000 करोड़ की आर्थिक हानि और 30,000 से अधिक समयपूर्व मौतों का कारण बनता है।
क्या राहत की उम्मीद है?
मौसम विभाग का कहना है कि आने वाले दिनों में हल्की बारिश या तेज़ हवाएँ चलीं, तो प्रदूषण थोड़ा घट सकता है।
हालांकि, दीवाली के बाद की स्थिति सबसे अहम होगी — क्योंकि उसी समय पराली और पटाखे दोनों अपने चरम पर होते हैं।
सरकार और पड़ोसी राज्य इस बार पहले से समन्वय की कोशिश कर रहे हैं ताकि हालात “Severe” तक न पहुँचें।
निष्कर्ष — दीवाली मनाएँ, लेकिन ज़िम्मेदारी के साथ
त्योहार खुशियों का प्रतीक है, लेकिन अगर हवा में धुआं और ज़हर घुल जाए तो खुशी अधूरी रह जाती है।
दिल्ली की हवा अभी “Poor” श्रेणी में है, और अगले कुछ हफ्तों में और बिगड़ सकती है।
सरकार, वैज्ञानिक और नागरिक — सभी को एकजुट होकर काम करना होगा।
कम पटाखे, ज़्यादा पौधे, कम गाड़ियाँ, ज़्यादा जागरूकता — यही वो छोटे कदम हैं जो बड़ा फर्क ला सकते हैं।
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